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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

                                      विश्‍व पुस्‍तक दिवस 

     
    आनन्‍द विक्रम त्रिपाठी 

किताबें सही अर्थों में हमारी अच्‍छी और सच्‍ची मित्र हैं । बचपन का ककहरा अम्‍मा बाबू पढातें हैं और उसके बाद जब स्‍कूल जाना शुरु करतें हैं तो किताबें । फिर तो ये सिलसिला चलता ही रहता है और खास बात ये कि किताबें हमें जब भी मिलती हैं कुछ न कुछ सिखातीं ही हैं , कोई न कोई सीख देकर ही जातीं हैं । उस पर सबसे अच्‍छी बात ये है कि ये बदले में कुछ मॉगती भी नहीं आप कितना भी पढो इन्‍हें ....सच्‍ची । हर उम्र में किताबों का आनन्‍द लिया जाता है । आज के युग में बचपन से लेकर बुढापे तक शायद ही कोई होगा जिसने कभी किताबें न पढ़ी हों , निश्चित ही  किताबों ने एक बार मित्रता का हाथ अवश्‍य बढाया होगा । अब आप इस बात को माने या माने ,भई मैं तो मानता हूॅ । किताबों के पास आप पहुॅचे नहीं कि उनका बुलाना शुरु हो जाता है । पिता जी को गये वर्षों हो गये पर गॉव जब भी जाता हूॅ तो आज भी पहले पिताजी के कमरे में ही जाता हूॅ क्‍यों ....क्‍योंकि इसी कमरे में तो किताबें रहती हैं । और जैसे ही कमरे में प्रवेश करता हूॅ आलमारियों से किताबें झॉकनें लगती हैं कि कौन आया । कहीं कहानी की किताबें बुलातीं हैं , कहीं ज्‍योतिष वाली किताबें तो कहीं पापा की ही लिखी किताबें बुलाती हैं  कि इस बार मुझसे मिलकर ही जाना और मैं भी मन ही मन सोच लेता हूॅ कि इस पक्‍का वो वाली किताब पढूगॉ । सच कह रहा हूॅ और आपने भी महसूस किया हम आलमारियों के पास से जब भी गुजरतें हैं तो महसूस होता है कि कोई बुला रहा है ......है न .....यही किताबें होती हैं । अकेले रहने वाले से पूछ‍िए कि किताबें कहॉ नहीं रहती उसके साथ । पढने खाने की  मेज से लेकर बिस्‍तर के सिराहने तक । कभी कभी तो कुछ लोग गजब कर देतें हैं कि दीर्घ शंका में भी किताब लेकर चले जातें हैं हलॉकि ये किताबों के हिसाब से उचित नहीं हैं , ऐसी पढाई  कुछ  पक्‍के शहराती लोग ही करतें हैं । कुछ लोगों के लिए किताबें दवा की तरह से होती हैं कि नींद लाने के किताबें पढतें हैं तो कुछ नींद भगाने के  लिए । किताबों की मित्रता की परिध‍ि बहुत विस्‍तृत है । इनमें संकीर्णता नहीं हैं मतलब ये कि ये छोटा - बडा , अमीर-गरीब नहीं देखतीं हैं । इसीलिए हर वर्ग हर उम्र में इसको चाहने वाले मिलेंगे । एक बार मेरे कहने से अपने किताबों की आलमारी की तरफ जाइये न , पक्‍का है कि कोई न कोई किताब लेकर ही आयेंगे । किताबों से मित्रता हम सबके लिए फायदेमंद है । २३ अप्रैल को विश्‍व पुस्‍तक दिवस है , क्‍यों न कोई पुस्‍तक खरीद कर ये दिवस मनाया जाये ! 

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