फ़ॉलोअर

कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

.मित्र अकल्पित रुप से किसी शुभ घडी में जीवन में अवतरित हो जाता है और जीवन यात्रा के संकट उसके आ जाने से कम हो जाते हैं । और कभी ऐसी घटना घटित होती है कि जीवन की नॉव डगमगानें वाली थी , मान- गुमान नदी की धारा में बह जाने वाले थे , अकस्‍मात् अलक्ष्‍य जन्‍मा मित्र का उदय उसी धारा में हो गया , मित्र के प्रताप से धारा ही सूख गयी । महाभारत की कथा में युवराज सुयोधन के लिए कर्ण ऐसा ही मित्र बनकर आया था । आचार्य द्रोण रंगभूमि में राजकुमारों के अस्‍त्र शस्‍त्र का प्रदर्शन राजपरिवार तथा संभ्रान्‍त प्रजाजनों के समक्ष करा रहे थे । जब पाण्‍डु -पुत्र राजकुमार अर्जुन ने अपने बाणों से आग ,पानी बरसाने का ,बादलों के छाने ,हवा से उनके उड़ जाने का ,गगन को बाणों से आच्‍छादित कर देने आदि के अनेक कौशल दिखाये तब घृतराष्‍ट्र -पुत्र सुयोधन अपने में तथा भाइयों में इस वीरता का अभाव जानकर कातर हो उठा । थोड़ी ही देर में आचार्य द्रोण ने घोषित किया ,हमें गर्व है कि कुन्‍ती पुत्र आज संसार का सर्वश्रेष्‍ठ धनुर्धर है । इस घोषणा के समाप्‍त होते ही एक दूसरा राजकुमार सूत पुत्र कर्ण रंग मंच पर अपने आप आ गया , उसने कहा आचार्य ऐसी घोषणा न करें ,अर्जुन की समानता मैं कर सकता हूॅ मुझे इसका अवसर दिया जाये । रंगसभा अवसन्‍न हो गयी , सब की दृष्टि कर्ण की ओर लग गयी । संघर्ष का टालना अनिवार्य हो गया , अन्‍यथा रंग में भंग ही होने जा रहा था । लेकिन दूसरी ओर सुयोधन की दीनता दूर हो गयी , प्रफुल्लित होकर कर्ण के निकट आ गया । तब तक किसी ने कहा कर्ण --तुम सूत पुत्र हो ,अर्जुन राजकुमार है । राजकुमार से सामना करने का अधिकार राजपुत्र को ही है ,तुमको नहीं । सुयोधन ने तत्‍काल कहा यदि ऐसी बात है तो कर्ण को अंग देश का राजा बनाता हूॅ और राजमुकुट पहना रहा हूॅ ,इतना कहकर उसने कर्ण के मस्‍तक पर राजमुकुट रख दिया ,उसके साथियों ने जय घोष किया अंगराज कर्ण की जय । संघर्ष टालने के लिए रंग भूमि विसजिर्त कर दी गयी । इसके साथ ही सुयोधन की अटूट मैत्री का अनोखा जन्‍म उस घ्‍ाटना के बीच हो गया । --------पूज्‍य डॉ0 जयशंकर त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें